Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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एक नव अकुरित पौधे को

 

 

एक नव अकुरित पौधे को,खिलने नही दिया,
मॉ को ही तुमने उसके वजूद,से मिलने नही दिया
वो तुम्हारे घर मे लक्षमी,बन आती है
तुमको,ही क्या घर लोगो,के मन को भाती
एक बेटे की चाह मे एक,गुनाह कर गये तुम,
बेटे को मारकर मेरी
नजर,मे जीते जी मर ग़ए,तुम
आज पता चला यहा
पैसो,की क्यो कमी है
बेटी को मारकर धन पर,नजर कैसे जमी है
वो घर को मान्दिर कर जाती,
घर मे ऐसी रहती के सबके दिल मे घर कर जाती,
आज मॉ आँसू बहा रही,है
उसकी बेटी जो मारी
जा रही है
अब ये धरती मे कोई मॉ कैसे,होगी
नही होगी तेरी शादी
बन जा तु जोगी

 

 

 

Abhishek Jain

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