Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गुजरता हु उन गिलयों से जब कभी मै

 

गुजरता हु उन गिलयों से जब कभी मै
एक अजीब सी सरसराहट सुनाई देती है

 

हर कदम पर तेरी आहट सुनाई देती है
क्या कहु की की दर्द िकतना तेरी जुदाई देती है

 

सोता नहीं हु अब कभी नींद भर सोये अब अरसा हुआ
करता हु कोिशश जब कभी ख्वाबो में भी तू ही िदखाई देती है

 

मुस्कुराहट से तेरी िखल उठता था मेरा भी चेहरा मगर
खामोसी अब चेहरे पर िदखाई देती है

 

झूठी खुसी से रोकता हु अपना गम
तन्हाई आकर मुझे िफर से रुला देती है

 

कहते हैं इश्क में रंगीन है हर स्याही
तेरे िबन अब इश्क फीका िदखाई देता है

 

हांथो से रेत की तरह िफंसल रहा है वक़्त
घड़ी की िटक िटक में तेरी हलचल सुनाई देती है

 

गुजरता हु उन गिलयों से जब कभी मै
एक अजीब सी सरसराहट सुनाई देती है

 

 

 


अभिषेक शुक्ला

 

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