Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हास्य की पुकार खो ना जाये देश

 

हास्य की पुकार

खो ना जाये देश

गीतो की लोरी मे

सो ना जाये देश

फासी के फन्दे पे

झूलके मिली है आजादी
फिर सा अब कही गुलाम

हो ना जायै देश

मिट गये जिनका जीवन

वो आज आँसू बहाते है
क्या इसालिऐ पाई थी आजादी

 सोच सोच पचताते है

गान्धी जी फिर अपने से घबराते है

विदेशी दुकान खुलवाने जब नेताजी आते है

देश की लाज आज पैसो से बडी हो ग़ई

जनता फिर गरीबी मे खडी हो ग़ई

 

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