Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जख्म से भरे दिल से

 

 

जख्म से भरे दिल से
खून टपक रहा है,
चेहरे पे दर्द के कारन झुरिया आ ग़ई
दिल भारी हो गया
पत्थर के सामान
जिसकी सवेदना मर चुकी है
वह प्यार नही कर सकता,
प्यार के लिये दिल की,जरूरत होती है
उसके पास दिल रहा ही नही
लहू अंदर के तरफ बह,रहा होगा
जो उसके पतन की कहानी,कह रहा होगा
धीरे धीरे उसकी सास
भारी,हो रही होगी
और ठंडा पडता शरीर
उसको ऐसी नीद मे डूबा,रहा होगा
जिसका खुलना कभी
संभव ही नही होगा
मेरी काविता उसकी
भावना को मन की
गहराई,से कहेगी
ये दोस्त ये दुनिया
तुम्हारी
कैसे तुम बिन रहेगी
क्या कोई तुमसा
फिर,यहा हर किसी
को,हँसा पायेगा
क्या कोई दोस्त
अकेला,रह जायेगा
नही ये दोस्ती कभी
नही मिट पायेगी
ये दोस्त तुम़हारी बहुत याद आयेगी
अकेलपन काटने को
होगा,मुझे बिन तुम़हारे
अब आँसू ही नाम
तुम्हारा पुकारे

 

 

 

Abhishek Jain

 

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