कच्चे घर अब नही शहर,की शान रहे
बडी हवेली के सामने
ऐ घर सदा वीरन,रहे
सलीखा था बात करने,का उनमे
वो शख्स आज भी मेरे,लिऐ भगवान रहे
सुबह कर थे हम नास्ता,तब लगा
वो सुबह से हल चलाते,भूखे किसान रहे
रहती थी कभी महफिल,जहा
वो रास्ते आज वीरान,रहे
आभिषेक जैन
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY