Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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खुशी भी अब रूलाने,लगी||

 

 

खुशी भी अब रूलाने,लगी||1||

 दिल तोडकर वो,जानी लगी||2||

मेरी तो अक्सर ,करीब थी वो||3||

फिर क्यो वो ,दूरिया बढाने लगी

 

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