Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मुह मे राम बगल मे छुरी

 

 

मुह मे राम बगल मे छुरी

क्यो होती है दुनिया बुरी

आदत से मजबूर यहा के देखो रे इंसान

कितना करते है कोहराम
कभी किसी का साथ न देता

अच्छे काम मे हाथ ना देतै
साथ साथ नही है

अब किश्न संग बलराम
कितना मचा रहे कोहराम

होते नही अब प्यारी दीवाली

देखी पडी है कुटिया खाली

नही अब यहा पर कौई रहता है इंसान

कितना मचा रहे कोहराम

होता यहा महगाई का दंगा

लेते है ये सभी से पंगा

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