वो गुडिया कितनी भली,थी
नही,थी पास इसालिऐ,कमी उसकी खली थी,
वो अपने अंदर जाने
कितने सपने सजाऐ रखती,थी
बडे होकर शायद कुछ बनना होगा||
चढनी होगी कामयबी,सीढी,
गरीबी से गुरजने वाली,थी वह पीढी
बहुत मासूमियत से
करती,थी वह बाते
काट थी उसने भूखे कितनी,राते
मेरे मन मे कुछ रखती है,जगह
ख्वाब मे बन ख्याल
पलती,थी
जाने क्या था उसके अंदर,
पल मे वह मन मोह
लेती,थी
सभी को खुद से जोड
लेती,थी
आते थे जब गम के बादल,इस जीवन मे,
वो सूरज बन जली थी
आभिषेक जैन
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