Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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वो कितने अच्छे दिन थे

 

 

वो कितने अच्छे दिन थे,
सभी खुशी रहते थे
जो एक दूसरो को अपना,कहते है
जाने क्या हुआ तुने
एकता की छाती,मे छेद,कर दिया
इंसा और इंसा मे भेद कर,दिया
खेतो मे हानि हुई रोने
आ,ग़ये
उसमे भी राजनीति के पौधे,बौने आ ग़ये
रात को तुम जब घर सोने,आते हो
मन मे कही सुबह की चिन्ता को नही पाते,हो
अब की दुनिया का हर,रंग विषैला,होगा
कितने भी नहा लेना गंगा,मे रंग तेरा फिर भी मैला,हो गा
तुझको धोने वाली गंगा,नही बनी है
उसका आकर है कम तेरी प्रजीति घनी है,
तुमको धोते धोते वो भी,सूख जाऐगी,
तुम हो विषैले तो वो भी विषैली,हो जाऐगी
जब नफरत को तुमने अपनी,शैली बनाई
गंगा थी पावत्रि तुमने ही,मैली,बनाई

 

 

 

Abhishek Jain

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