Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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वो पिघली बर्फ की तरह,निगाह मे

 

 

वो पिघली बर्फ की तरह,निगाह मे
से बह ना सके होगे
आँख से आँसू
तभी,निकलते है
गम भी कमाल का है
हँसी को चुराकर
कही दूर ले जाता है
फिर वही मायूस
चेहरा,रूलाने वाला
मौत भी अब एक बोझ,की तरह
जिदंगी पर है हंसने
वाली,हो ग़ई
ये खुशी फिर लौट

मेरे दिल को हंसाने
के लिये
आखिर बार पाकर
मै तुझे मै अपने अंदर भर,लू
थोडा सा पल मेरा
नाम तुम्हारे कर लू
दबा हुआ मन
भार की तरह
तोड ना दे
अब मुझे मरने
के लिये
तेरी है जरूरत
तु मिलेगी मुझे
इसी वादो से
इंतजार करना है

 

 

 

आभिषेक जैन

 

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