Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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वो सुनहारी धूप की तरह,जगमगा,रहे है

 


वो सुनहारी धूप की तरह,जगमगा,रहे है
जैसे छुपाई हो अपने
अंदर,किसी जलते हुऐ सूरज,को
दूर दूर तक फैला होगा,उजाला उसका
रोशन कर रही है
सभी की राहे वो
खुदा भी दे रहा हवाला,जिसका
नही आती है संध्या
उसके रहने,से
मिला हो देश निकाला उसको,
हर गली हर कुचे हर नुकड,पर चरचा रही तेरी,
रहा हमेशा बोलबाला जिसका,

 

 

 

Abhishek Jain

 

 

 

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