Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिदंगी जब बोझ मे भारी हो जाऐगी

 

 

जिदंगी जब बोझ मे भारी हो जाऐगी

जिदंगी की गम से यारी हो जाऐगी

यू घूटघूटकर जीते रहे जो हम जिदंगी

मौत को प्यारी हो जाऐगी

देखो सपनो मगर आशा छोडके बरना
पूरी करने की उम्मीद जारी हो जाऐगी

सुबह के ऊपर गम भरी रात भारी हो जाऐगी

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