Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिदंगी जब हमे

 

जिदंगी जब हमे, सताने लगती है||1||

याद तेरी आने लगती है||2||
हमने दी थी लबो पै,हँसी जिनको,,,,

वो हम रूलाने लगती,है

खुशी अब नही दैती,साथ मेरा,,,,,

वो भी दिल तोडकर,जाने लगती है

था यकीन तुम्हारै,साथ निभाने का

वो क्यो दूरिया बढाने लगती है

 

आभिषेक जैन

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