Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बचपन

 

 

धुंधली सी यादें ज़ेहन में,बचपन की.…
याद आती है हमें, उस लड़कपन की.…

 

आँखों में लिए आँसू, स्कूल जाते थे,
ख़ूब टीचरों को भी, हम सताते थे ।
पिटते थे और ख़ूब, हम पिटवाते थे,
याद सताए वो सारे, बावलेपन की.…

 

धुंधली सी यादें ज़ेहन में,बचपन की.…
याद आती है हमें, उस लड़कपन की.…

 

खेल खेल में लड़ना, दोस्तों के संग,
गले मिलकर फिर, मचाना वो हुर्दंग।
माँ चिल्लाती, कभी बुलाते थे बाबा,
याद सताए अब वो,बीते बाँकपन की.…

 

धुंधली सी यादें ज़ेहन में,बचपन की.…
याद आती है हमें, उस लड़कपन की.…

 

ना पता चलता कब सूरज छिपता था,
दूर गगन में कब चाँद निकलता था ।
फ़िक्र न कोई चिंता हमें, छू पाती थी,
अब याद सताए वो मस्ती,के दिन की..

 

धुंधली सी यादें ज़ेहन में,बचपन की.…
याद आती है हमें, उस लड़कपन की.…

 

जीवन में बहुत के, हमपर हैं उपकार,
बचपन के स्वप्नों को,करना है साकार।
कहाँ भूला पाते हैं, हम उन यादों को,
चाहे अपनी उमर, हो जाए पचपन की..

 

 

धुंधली सी यादें ज़ेहन में,बचपन की.…
याद आती है हमें, उस लड़कपन की.…

 

 


--अभिषेक कुमार झा ''अभी''

 

 

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