आज मुझे
उस हँसी ने
अंतःकरण तक
झिंझोड़ दिया
उसके पीछे,
आशय क्या था ?
मस्तिष्क को सोचने पे
विवश कर दिया
दर्पण में झाँकने को
पल पल में बाध्य
द्वंदात्मक पहलू में
कुछ रहा न साध्य
क्यूँ क्यूँ
क्यूँ किया ऐसा
वो भी जब
मैं कह रहा था
गम्भीर शब्द
वो हँस रहा था
और मैं हो गया था
निशब्द निशब्द
-अभिषेक कुमार ''अभी''
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