हथेली पर जान दिल में खुद्दारी रखते है..
हम तिरंगे के सामने वफादारी रखते है..
अब तो उस शख़्स को सरेआम फ़ासी दो..
जो लफ्जो में बारूद और चिंगारी रखते है..
दुश्मनो के दाँत खट्टे कर के रख देंगे..
एक-एक कतरे खून में जवानी रखते है..
नफ़रत की गन्दगी हमारा क्या बिगाड़ेगी..
घर के आगे हम भी बागवानी रखते है..
वो नर्क की आज में झुलसेंगे एक दिन..
जो शख़्स अपने दिल में बेईमानी रखते है..
तू ही है मेरी मंजिल तुझे हम पाकर दम लेंगे..
ये हौसला अब अपने दिल में खानदानी रखते है..
कोटि-कोटि नमन उन्हें ये "आशिक़" करता है..
जो अपनी शहादत का नाम हिन्दुस्तानी रखते है..
अभिजीत शर्मा (आवारा आशिक़)
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