किस्मत के गुरुर को चूर चूर न कर सका..
खुद को कभी तुझसे दूर न कर सका..
अफ़सोस रहेगा ज़िन्दगी में इस बात का मुझे..
कि मैं तेरी मांग में सिन्दूर न भर सका..
तलाश थी उसे खुसबुओ भरी ज़िन्दगी की..
मैं माली होकर भी उसके दामन में फूल न भर सका..
वो चाँद था जो रौशन था मेरे दम पर..
मैं सूरज होकर भी उसे बेनूर न कर सका..
ये प्यासे होठ उसकी होठ के इन्तजार में मर गए..
समंदर चाह के भी मुझको मजबूर न कर सका..
(आवारा आशिक़)
अभिजीत शर्मा
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