Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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परिन्दे.. खंभों पे नहीं, शाखों पे रेह..

 

 

परिन्दे.. खंभों पे नहीं, शाखों पे रेह..
तू मेरा है, तो मेरा बनके रेह..

 

मेरे घर के वो टूटे दिए आज भी चमकते है..
ऐ आफ़ताब.. ज़रा औकात में रेह..

 

क्या जरुरत है, आलिशान महलों की..
मकान है.. मकान में रेह..

 

गिला न कर जो उसने, नज़रे चुरालि तुझसे..
तू प्यार करता है, तो प्यार करते रेह..

 

तेरे बाद किसी को ना दी, ये मकां रहने को..
अब ये तेरा ही घर है, तू आते जाते रेह..

 

 

 

:- अभिजीत शर्मा (आवारा आशिक़)

 

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