Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इंसान बनो तुम

 

नवयुग की मुस्कान बनो तुम।
मानवता के मान बनो तुम।
विश्व क्षितिज पर ध्रुवतारे सी,
भारत की पहचान बनो तुम।
नवयुग की मुस्कान बनो तुम।
चमको चाँद सितारे बनकर।
सबकी आँखों के तारे बनकर।
मातृभूमि के रखवाले हो,
मातृभूमि की शान बनो तुम।
नवयुग की मुस्कान बनो तुम।
सुनना और समझना सीखो।
क्या कहना है, कहना सीखो।
जीर्ण शीर्ण मान्यताएं तोड़ो,
जन-जन के अरमान बनो तुम।
नवयुग की मुस्कान बनो तुम।
शीतल मन्द समीर बनो तुम।
जन मानस के पीर बनो तुम।
तुलसी, सूर, कबीर, जायसी,
घनानंद, रसखान बनो तुम।
नवयुग की मुस्कान बनो तुम।
हँसना और हंसाना सीखो।
सबको गले लगाना सीखो।
जाति, धर्म, सीमाएं छोड़ो,
एक प्यारा इंसान बनो तुम।
नवयुग की मुस्कान बनो तुम।

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आचार्य बलवन्त

 

 

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