दर्द भी उसका मसीहा भी वो।
धूप गर वो है तो साया भी वो।
रात ख्वाबों में जो मिलती अक्सर।
बेबसी भी वो तमन्ना भी वो।
आँख कहती अजनबी है जिसको।
दिल कहे मेरा शनासा भी वो।.........शनासा(परिचित)
,,,,,,,,,,,,आदर्श बाराबंकवी,,,,,,,,,,,,
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