दौलत कमा रहे हो मगर भूल ये गए।
परखे हुए हलाल ज़माने गुज़र गए।
मुझपे यकीं करेंगे न जाने वो किस घडी।
हर बात में सवाल ज़माने गुज़र गए।
कहता रहा उसे की ज़माने के साथ चल।
बदली न उसने चाल ज़माने गुज़र गए।
इतनी बढ़ी हुई है गरानी कि क्या कहूँ।
खाये हुए तो दाल ज़माने गुज़र गए।
.......आदर्श बाराबंकवी....
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY