Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दौर-ऐ- मुफलिसी में किस कदर वक़्त की परतें उधड़ गयीं

 

दौर-ऐ- मुफलिसी में किस कदर वक़्त की परतें उधड़ गयीं,
गौर कुछ किया तो लगा रातों रात बेटियां बढ़ गयीं.......


आवाज़ उठाई जो मैंने इक सय्याद के मुखालिफ,
अचानक मुंडेर पे मेरी परिंदों की तादाद बढ़ गयी..........


बंद आँखों से तराशा पत्थर जाने किस ख्याल में,
देखा गौर से तो लगा तेरी तस्वीर गढ़ गयी....


तमाम धागे बंधे देखे जो दरख़्त ऐ इबादत गाह में,
लगा रंग बिरंगी बेलें मन्नतों की सब उस पे चढ़ गयीं......


आरजू ऐ दिल की कहानी आदर्श न पूछ मुझसे,
देखा जो तुम्हे तो सिर्फ तुम्हे पाने को अड़ गयीं .....

 

 

 

आदर्श

 

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