Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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देर से आने की तू सफाई न दे

 

 

देर से आने की तू सफाई न दे,
दूर नज़रों से हो, जा दिखाई न दे.....

 

मैंने रोके हैं आंसू बहुत देर से....
याद आ आ के मुझको रुलाई न दे.....

 

अब जरूरत किसे है वफ़ा की यहाँ
और मुझको ख़ुदा अब भलाई न दे......

 

जख्म तुझसे मिले ये मुकद्दर मिरा,
आरज़ू अब यही,तू दवाई न दे.....

 

ज़र्फ़ कितना भी हो,इश्क में ऐ ख़ुदा...
तू किसी को किसी से जुदाई न दे.....

 

हो मसीहा तो आदर्श कितना मगर,
बन के बंदा रहे तू खुदाई न दे.............

 

 

 

आदर्श बाराबंकवी........

 

 

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