देर से आने की तू सफाई न दे,
दूर नज़रों से हो, जा दिखाई न दे.....
मैंने रोके हैं आंसू बहुत देर से....
याद आ आ के मुझको रुलाई न दे.....
अब जरूरत किसे है वफ़ा की यहाँ
और मुझको ख़ुदा अब भलाई न दे......
जख्म तुझसे मिले ये मुकद्दर मिरा,
आरज़ू अब यही,तू दवाई न दे.....
ज़र्फ़ कितना भी हो,इश्क में ऐ ख़ुदा...
तू किसी को किसी से जुदाई न दे.....
हो मसीहा तो आदर्श कितना मगर,
बन के बंदा रहे तू खुदाई न दे.............
आदर्श बाराबंकवी........
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