हर सु दिल के सवालातों से घिर गया हूँ मैं,
तुम्हारी याद को लेकर जिधर गया हूँ मैं.......
रफ़्तार ऐ जिंदगी यूँ थामी तेरी बेवफाई ने,
अब इक मील के पत्थर सा ठहर गया हूँ मैं..........
कसम उनके कूचे में न जाने की दिल ने निभाई बहुत,
ये कदम गुस्ताख निकले ,जो कभी उधर गया हूँ मैं......
मुफलिसी में मेरे ज़मीर के सौदागर तो कई मिले,
फाकों में भी निवाला ऐ हराम से मुकर गया हूँ मैं.....
मेरे मौला तेरी सरपरस्ती से ही मेरा वजूद है,
तुझे छोड़ के खवाबों में भी किधर गया हूँ मैं....
बूढे माँ,बाप आखिर कब तलक मेरा बोझ उठायें,
हाथ उनका बटाने को कांधे से उतर गया हूँ मैं......
याद आता है आदर्श वो गुलाब सा बचपन माँ की गोद में,
बाद उनके जैसे खुद की ही शाख पर ही बिखर गया हूँ मैं ....
आदर्श
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