इस तरह वो मुझ मैं शामिल है,
मैं नदी हूँ मेरा वो साहिल है....
दिल में होता निकाल देता मैं,
बन के खूं वह रगों में शामिल है......
जाँ निकलने से पहले जान गया ,
मेरा हमदम ही मेरा कातिल है....
इश्क आतिश समझ वो डरता है,
रब ही जाने वो कैसा बुझदिल है.....
दर्द हरदम जो मुझ को देता हो
उसको अपना कहूँ ये मुश्किल है...
क्यूँ न आदर्श वक़्त की माने,
जब वो उसका ही अब मुवक्किल है
...आदर्श
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