जहाँ तेरा मुझे हर सिम्त क्यों बिखरा दिखाई दे....
जहाँ गुलज़ार होते थे वहां सहरा दिखाई दे...
मोहब्बत का वो दरिया पार हरगिज़ कर नहीं सकता,
जिसे दरिया का पानी दूर से गहरा दिखाई दे.....
गुलों से दुश्मनी क्यूँकर किसी की हो गयी यारों,
चमन में हर तरफ अब जो यहाँ पहरा दिखाई दे......
अदु भी दे गया मुझको बधाई कामयाबी पर,...अदु=दुश्मन
अज़ीज़ों का मगर चेहरा मुझे उतरा दिखाई दे......
आदर्श बाराबंकवी
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