जियूं मै देर तलक येअगर ज़रूरी है
तिरी दुआ क हो मुझ पे असर ज़रूरी है।
बुजुर्ग घर के पुराने हैं सायबां कि तरह
भरी दोपहरी में जैसे शज़र जरूरी है।
न धोखा हो कहीं शीशे में और हीरे में
कि इसके वास्ते काबिल नज़र ज़रूरी है।
मिले मिले न मिले फल चलो मोहब्बत का
इसी कि राह पे चलना मगर ज़रूरी है।
ये हमने मान लिया तुम तो हमसे रूठे हो।
हमारे ख्वाबों में आना मगर ज़रूरी है
न तोड़ डालो मोहब्बत के धागे चुटकी में।
की दुश्मनी में भी कुछ तो कसर ज़रूरी है।..............................
.......आदर्श बाराबंकवी
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