Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मुंसिफ बिके गवाह लगातार बिक गए

 

 

मुंसिफ बिके गवाह लगातार बिक गए।
वादी के इसमें देखिये घर बार बिक गए।

 

हरकत रसूखदार की छपती भला कहाँ।
बोली लगी जो सच कि कलमकार बिक गए।

 

जिस्म अपना बेचकर के तवायफ ने ये कहा।
सच पूछिये तो कितने हि ज़रदार बिक गए।

 

सच के खरीददार की कितनी करी तलाश।
पर देखते ही झूठ के अम्बार बिक गए ।

 

देखे तमाम लोग जो ईमानदार थे।
बिकने की बात पर पसे दीवार बिक गए।

 

बच्चे का दूध अपनी दवाई ज़रूरतें।
इनको खरीदने मे कई बार बिक गए।

 


.........आदर्श बाराबंकवी....

 

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