Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ये इश्क भी खुद में इक किताब है

 


ये इश्क भी खुद में इक किताब है
इसे पढ़ के जानो क्या लाजवाब है....


कभी देती है सेंकडो ख़ुशी के मंज़र,
तो कभी खुद में ही इक आजाब है.....


कभी मरहम सी है,हरेक जख्म पर,
तो कहीं खुद में ही सेंकडो खराश है......


पढ़ के इसको बहकते खुद ही कदम,
भले रख्खो कितने भी एहतियात है.........


तन्हाईयाँ पैदा करती है सरे महफ़िल,
तो कई वीराने भी इसी से आबाद हैं......


कब कहाँ राह चलते भी ये हो जाये,
खुदा जाने की ये क्या इत्तेफाक है......


कभी बंदिशों या जंजीरों में ये न रहा,
आदर्श इश्क तो हरदम आजाद है.....

 

 

 

आदर्श

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