नूर हर सिम्त फैल जाता है
जब वो सूरज नया उगाता है
उङने लगता है रंग चेहरे का
वक़्त जब आइना दिखाता है
डूब जाती है नाव और कभी
एक तिनका भी काम आता है
हौसला है तो नीम खाके दिखा
शहद हर कोई चाट जाता है
उसकी आदत है घर हङपने की
सांप कब कोई बिल बनाता है
आज़र
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