Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

वो ज़िंदा होके भी ज़िंदा नहीं है

 

वो ज़िंदा होके भी ज़िंदा नहीं है

अडब जइसन कोइ साचा नहिं है

इरादा दोब जये हर केसी का

समंदर इटना भी गहरा नहीं है


कभी फुर्सत नहीं थी ऐ पाल की

मगर अब वक़्त है, कट ता नहीं है


 करगा और भी साज़िश ऐसी 'नज़र'

मीरा दिल थेक से उजड़ा नहीं है


 


 


 


aazar

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ