मेसर्स आवारा प्रसाद दुक्खन प्रसाद प्राइवेट लिमिटेड। उसकी फर्म का नाम है यह। सभ्य लोग उसे ‘अवारा’ कहते हैं। उसे इतने चलताऊ नाम से क्यों नवाजा गया, बेहतरीन कहानी (आपको इस घोषणा से नाइत्तफाकी रखने का पूरा हक है) की शुरुआत में ही बताकर बोरियत की चादर नहीं बिछाना चाहता। कहानी आगे बढ़ने के साथ-साथ यह खुद ब खुद साफ हो जाएगा। लेकिन इतना बताना मुनासिब है कि उसका शगल है लखनऊ के बहुखंडीय मंत्री आवास, दारुल शफा, रॉयल होटल और ओसीआर परिसर में ठलुअई। अब कुछ मसले की बात...
14 अगस्त की रात। रोशनी से जगमग था विधानसभा मार्ग। जो निहारे, वही निहाल। इस मार्ग की सिफत है कि वैचारिक मतभेदों के साथ शांतिपूर्ण सह अस्तित्व। यहां हवा में कोई शिगूफा नहीं उछाला जा रहा है। समझने-बूझने वाला चश्मा उतार न फेंका हो तो एक बार उधर से गुजरकर ही ताईद कर देंगे।
फिर भी न मानों तो पेश हैं सबूत
भाजपा और कम्युनिस्टों के दफ्तर अगल-बगल में ही हैं। कभी कोई झगड़ा-टंटा सुना किसी ने।
कांग्रेस के आमोद तिवारी को सपा ने राज्यसभा में भेजा है। बसपा के राज में मुख्यमंत्री मायावती के घर में भी बिना किसी रोकटोक के उनकी आवाजाही थी। सत्ता की दलाली को उन्होंने हमेशा तरजीह दी, बनिस्बत गांधीवादी सिद्धांतों के।
उस रात देर तक मेसर्स अवारा प्रसाद दुक्खन प्रसाद का प्रोपराइटर विधानसभा मार्ग पर टहलता रहा। हजरतगंज चौराहे पर गुमटी से सिगरेट खरीदकर धुएं के छल्ले बनाता रहा। सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान की आजादी का लुत्फ उठाता रहा। पुलिस वालों ने रोका-टोका नहीं तो आजाद आबोहवा भी शिद्दत से महसूस की।
फिर दारुलशफा के बरामदे में अखबार बिछाकर वह आराम से पसर गया। मच्छर और उमस नींद से मोर्चा लेते रहे। भोर होने पर उठा, कपड़े झाड़े और सार्वजनिक शौचालय में दाखिल हुआ। बाहर निकला तो चाय के ठेलों पर गहन राजनीतिक मंथन शुरू हो चुका था।
दारुलशफा में यह मंथन रोज सुबह होता है। विधायक आवासों में रुकने वाले ठलुए चाय पीने के लिए आते, मुलायम-मायावती-मोदी-अन्ना से शुरू हुई चर्चा ओबामा तक जाती।
नत्थू लाल ‘मास्टर’ (आगे से सिर्फ मास्टर) दैनिक अखबारों की अलग-अलग ढेरी सजाए बैठा था- दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिन्दुस्तान, एनबीटी, कैनविज टाइम्स और स्वतंत्र भारत ....
देवरिया के राम खिलावन ने एक हाथ से चाय का गिलास पकड़े ही एक ढेरी में से अखबार उठा लिया।
चर्चा जारी थी...
'मोदी सभाएं कितनी भी कर लें, लेकिन यूपी में सपा ही आगे रहेगी।' पसमांदा समाज विकास समिति से जुड़े नईम खां ने फरमाया।
‘भाई मुसलमान कांग्रेस, बसपा और सपा में बंटा तो केंद्र की बाजी भाजपा के हाथ ही रहेगी।'
रविंद्र यादव ने सड़क पर पान की पीक मारते हुए कहा।
‘अमां यार यहीं चाय बन रही है और यहीं थूक रहे हो। कुछ तो लिहाज करो।' मास्टर से देखा न गया। सो, बातचीत में खलल डाल दी।
‘तुझे बड़ी साफ-सफाई की पड़ी है रे मास्टर। पहले जनम में का बाबन था।' राम खिलावन में दांत दिखाते हुए कहा।
‘बहस बाद में, जेब से अखबार का दाम निकाल लो। मास्टर ने तकाजा किया।'
‘अरे ले अपना अखबार। नहीं पढ़ना।' पूरा अखबार बांचने के बाद राम खिलावन ने ढेरियों पर ही अखबार दे मारा।
चर्चा फिर शुरू हो गई....
मुजफ्फरनगर कांड ने मुसलमानों को सपा से दूर कर दिया है।
नहीं भाई डरा दिया है। बिना मोदी के राज के तो जाटों ने मुसलमानों को इतना काटा। मोदी आ जाएगा तो न जाने क्या होगा।
हिंदू वोट तो भाजपा ले जाएगी।
कांग्रेस और बसपा में भी तो बंटेगा हिंदुओं का भोट।
पता नहीं यह देश किस रसातल में जा रहा है।
कहीं ब्रिटेन की जगह अब अमेरिका काबिज न हो जाए हमारे मुल्क पर।
‘भाई बहुत बतिया लिए। चलो मंत्री आवास भी हो लिया जाए। कहीं मंत्री जी निकल न जाएं।' नईम खां ने कहा।
‘भइया ...पैसे।' चाय वाले मुलू ने ठीक उसी अंदाज में इन नेताओं को देखा मानों देसी मुर्गी कसाई को देख रही हो।
‘कितने हुए? ' रविंद्र ने झिड़कते हुए पूछा। गोए दाम नहीं, बख्शीश दे रहे हों।
चार चाय बीस रुपये।
‘तीन जनों ने एक बार में चार चाय कैसे पी ली रे मुलू।' राम खिलावन ने डांटते हुए कहा।
‘जे तुम्हारे साथ न हैं?' आवारा प्रसाद की ओर इशारा करते हुए मुलू ने कहा, जो उस समय अखबारों की हर ढेरी के पहले पृष्ठ के ऊपरी आधे भाग पर तल्लीनता से निगाह दौड़ा रहे थे।
सारी महंगाई विधायक निवास में ही आ गई है। चार चाय के बीस रुपये। वह भी तीन पीने पर। रविंद्र की आवाज पूरी सड़क पर गूंज गई। मानों मुलू उनसे कोई बड़ी रकम ऐंठ रहा हो।
‘जनाब परसों तो आप मुख्यमंत्री के साथ भारतेंदु नाटक अकादमी में मंच पर बैठे थे। उदय भारत संस्था का कार्यक्रम था ना...। ' आवारा प्रसाद ने नईम खां से मुखातिब होते हुए इतनी जोर से कहा कि राह चलते लोगों की निगाहें नईम खां की ओर मुड़ गईं। ऐसा सम्मान पा नईम खां का चेहरा खिल गया।
फौरन जेब से पचास का नोट निकालकर मुलू को दे दिया। मुलू हिसाब काटकर बचे रुपये वापस देने लगा तो नईम खां ने मना कर दिया। भाई, गरीब आदमी हो। रख लो। बस दुआ दे देना कि जिस काम से आए हैं, बन जाए।
तीनों जाने लगे तो आवारा प्रसाद ने जोर का सलाम ठोंका।
भाई तेरा जवाब नहीं आवारा। मास्टर ने कहा। हाथी के मुंह से गन्ना निकालने सरीखा काम चुटकियों में कर देता है।
दस रुपये देना रे? आवारा प्रसाद ने चाय वाले मुलू के आगे हाथ फैलाया।
काहे के?
'हिसाब से तीस रुपये ज्यादा मिले न।' आवारा ने कहा।
'इसमें तेरा क्या है?' मुलू का जवाब था।
'वैसे भी जब से धरनास्थल और दारुलशफा के बीच दीवार खड़ी हुई है। आमदनी काफी कम हो गई है। विधायक निवास नहीं विधवा निवास हो गया है यह।' मुलू ने जोड़ा।
'ठीक है तो अगली बार ऐसे अड़ियल लोगों से रुपये लेकर देखना। ऐसा पांसा फेकूंगा कि मूत निकल आएगा।' आंखें तरेरते हुए आवारा ने कहा।
मुलू को समझ आ गया कि आवारा से रिश्ते खराब करने में समझदारी नहीं। इसलिए फौरन निकाल के दस रुपये दे दिए।
मास्टर ने पूछा-भाई आवारा तू भारतेंदु नाटक अकादमी में क्यों गया था।
'कौन सी भारतेंदु नाटक अकादमी?'
‘कौन सी! अभी तो तूने नेता लोगन से कहा था! ' मास्टर ने आंखें फैलाकर कहा।
आवारा जोर से हंसा, 'कल तेरे ही तो ढेरी में रखे अखबारों में पढ़ा था कि मुख्यमंत्री ने भारतेंदु नाटक अकादमी में उदय भारत संस्था को एक करोड़ रुपये देने की घोषणा की है। वही खबर दे मारी नेता जी पर।'
'अबे मेरे अखबार के पैसे भी दिलवा देता!' मास्टर ने आवारा से कहा।
'तू तो मास्टरी की बड़ी ऐंठ में रहता है। वैसे तू मास्टर है काहे का।'
मैं अंग्रेजी की कोचिंग लेता हूं। सुबह सिर्फ घंटे भर के लिए अखबार बेचने आता हूं। इसलिए सब लोग मुझे मास्टर बुलाते हैं।
‘बढ़िया, फिर तो तेरी आमदनी बड़ी अच्छी है।'आवारा ने कहा।
‘और क्या!'
‘चल तेरे पैसे भी आगे से न मरने दूंगा।' आवारा ने मास्टर से कहा। 'जरा दस रुपये तो दे दे। कुछ व्हाइट पेपर खरीदने हैं।'
‘आज मेरी कोई आमदनी नहीं हुई। ज्यादातर लोगों ने अखबार पढ़ा और रखकर चलते बने।' मास्टर ने जवाब दिया।
‘आप तो बड़े आदमी हैं मास्टर जी। कोचिंग से भी अच्छा कमाते हैं। देखने में ही काफी जहीन लगते हैं।' आवारा ने गंभीरता ओढ़ते हुए कहा।
इससे बिगाड़ना ठीक नहीं। मास्टर ने मिट्टी में सने पैर साफ करते हुए कुर्ते की जेब से दस का नोट निकालकर आवारा को दे दिया। आज की उनकी बचत इतनी ही थी।
मेसर्स आवारा प्रसाद दुक्खन प्रसाद के प्रोपराइटर आवारा प्रसाद दो घंटे में बीस रुपये, एक प्याली चाय और हमेशा के लिए मुफ्त में अखबार पढ़ने का इंतजाम कर बहुखंडीय मंत्री आवास की ओर बढ़ चुके थे।
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हजरतगंज चौराहे से बहुखंडीय मंत्री आवास पहुंचने के लिए आवारा बस में सवार हो लिया। दस मिनट बाद वह माले नंबर सात, फ्लैट नंबर 701 के बाहर खड़ा था। घंटी बजाने से पहले वह आत्मविश्वास से लवरेज हो जाना चाहता था। क्योंकि, संतरी के आने पर आत्मविश्वास ही उसे अंदर दाखिल करा सकता था।
‘कृपया दरवाजा खोलिए...कृपया दरवाजा खोलिए।' घंटी का बटन दबाते ही सुरीली आवाज कानों में पहुंची। हाथ में स्टेनगन और सिर पर कैप लगाए संतरी ने आहिस्ता से दरवाजा खोला।
संतरी कुछ कह पाता, इससे पहले ही आवारा ने सवाल दाग दिया, ‘मंत्री जी हैं क्या, फोन पर बात हुई थी। बुलाया था मुझे।'
संतरी उसे अंदर लिवा ले गया और बैठक में बिठा दिया।
अगर संतरी यह पूछ लेता कि कब बात हुई थी फोन से तो बेचारा आवारा फंस जाता। लेकिन चेहरे पर झलक रहे आत्मविश्वास के आगे संतरी के सवाल करने की क्षमता कहीं गुम हो गई।
जब तक आवारा प्रसाद मंत्री से रूबरू हो, आपका मंत्रीजी से भी परिचय करा दें। एम्बेस्डर कार और दो सुरक्षा गार्डों की वजह से मंत्री आबिद रजा जिधर भी जाते हैं, सलाम ठोकने वालों की लाइन लग जाती है। लेकिन किसी को नहीं पता होता कि वह किस विभाग के मंत्री हैं। ठीक उसी तरह से जैसे मेसर्स अवारा प्रसाद दुक्खन प्रसाद प्राइवेट लिमिटेड का पता ठिकाना कोई नहीं जानता।
एक आध जना पूछ ही लेता है कि आपका विभाग कौन सा है। जवाब मंत्री जी के गार्ड से मिलता है-राज्य एकीकरण परिषद।
वह आगे जोड़ता, 'अहम् महकमा है, क्योंकि हमारे सूबे में कहीं न कहीं दंगे होते ही रहते हैं।'
खैर, लोगों को फिर भी समझ नहीं आता। इस तरह की स्थिति में वे कोई न कोई उपमा गढ़ ही लेते हैं। उनकी नजर में आबिद रजा हैं 'नामालूम विभाग मंत्री।'
मंत्रीजी के बारे में सबसे पते की बात है कि वे ठलुओं का बेहद सम्मान करते हैं। मंत्रीजी मानते हैं कि लोकतंत्र में सबसे महत्वपूर्ण होता है कि लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं! मंत्रीजी की ही भाषा में कहें तो विकास कराओ या न कराओ, लेकिन एक आध कारखाना लगवाकर ही प्रचार इतना करवा दो कि आपको लेकर परसेप्शन विकास पुरुष का बन जाए। और, मंत्रीजी का दृढ़ विश्वास है कि यह काम ठलुओं से बेहतर कोई नहीं कर सकता।
तो अब पाठकों की समझ में आ गया होगा कि आवारा इतने बड़े झूठ के सहारे बड़े ही रौब से मंत्रीजी के बैठक में क्यों पहुंच गया। जबकि उसकी मंत्री जी से कभी फोन पर बात ही नहीं हुई।
‘कृपया दरवाजा खोलिए... कृपया दरवाजा खोलिए'
बहराइच और ललितपुर से आए कुछ मौलवियों को भी संतरी बैठक में लिवा ले आया।
तकरीबन 15 मिनट इंतजार कराने के बाद मंत्रीजी बैठक में दाखिल हुए। उनके आते ही इत्र की खुशबू से पूरा कमरा महक उठा।
'अस सलाम वालेकुम'
एक साथ कई आवाज गूंजी : 'वालेकुम अस सलाम।'
‘हुजूर, दरगाह शरीफहजरत सैय्यद सालार मसऊद गाजी की दरगाह के सज्जादानशीन ने भी आपके कामों की बड़ी तारीफ की है। अखबार में उनका स्टेटमेंट भी छपा है।’
लोकल अखबार दिखाते हुए बहराइच से आए मौलाना फकीर उद्दीन ने फरमाया। ललितपुर के मौलाना शाहबुद्दीन अपने यहां मंत्रीजी की एक मजलिस कराने का ’इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल’ का पैगाम लेकर आए थे।
गुफ्तगू के सिलसिले को आवारा प्रसाद बड़ी ही शाइस्तगी से दूसरे ट्रैक पर ले आए। मोमिनों के बीच तो मंत्रीजी का रसूख बढ़ता ही जा रहा है। हिंदुओं में भी वे कम लोकप्रिय नहीं। परसों ही बाराबंकी में ड्राइवर अमर सिंह को पुलिस परेशान कर रही थी। उसकी रपट नहीं लिख रही थी। उसने मंत्री आबिद रजा से शिकायत करने की थानेदार को धमकी दे डाली। फिर क्या था। डर के मारे फौरन ही थानेदार ने उसकी रपट लिख ली।’
तारीफ के कसीदे किसी भी शख्स को आसमान पर पहुंचा देते हैं। मंत्री जी भी उस लम्हा वैसा ही महसूस कर रहे थे।
‘भाई अपना तो उसूल ही है अवाम की खिदमत। पांच भाई हैं, सब के सब रोजगारशुदा। पांच हजार रुपये रोज शाम को घर में आ जाते हैं। जीने के लिए इतना ही काफी है। बेईमान लोगों से कोसों दूर रहते हैं। इसलिए अवाम को मुझसे धोखा नहीं मिलता।’
'और नहीं तो क्या, अगर मंत्रीजी चाहें तो अपने ओहदे से डेढ़ लाख रुपये रोज कमा सकते हैं। लेकिन उन्होंने कभी पैसे की तरफ भागना सीखा ही नहीं।' मंत्रीजी के कुनबे की महीने भर की इनकम जोड़ते हुए आवारा प्रसाद ने फरमाया।
इसी दौरान मौलाना शहाबुद्दीन और फकीरउद्दीन ने अपने आने का इरादा भी जाहिर कर दिया। दोनों अपने-अपने इलाके के अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी की शिकायत लेकर आए थे। उनके भेजे छात्रों की लिस्ट फर्जी बताते हुए उन्होंने वजीफा देने से इन्कार कर दिया था।
मंत्रीजी ने उसी वक्त फोन पर दोनों अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारियों को सुधर जाने की हिदायत दी। शिकायत करने वालों के नाम भी अधिकारियों के जेहन में डाल दिए।
खुशी-खुशी दोनों मौलाना वहां से रुख्सत हुए।
आवारा ने मंत्रीजी को कोई काम नहीं बताया।
मंत्रीजी ने आवारा से पूछा, ‘खाना खाओगे?’
और, अर्दली को हुक्म दिया, ‘आवारा प्रसादजी को मेस में खाना खिलवाइये। यह जब भी आएं, इनका पूरा ख्याल रखा जाए।’
और, बैठक से उठ गए।
‘यह जब भी आएं पूरा ख्याल रखा जाए।’ सारे मुलाजिमों ने सुन लिया।
आवारा की दुकान चलने के लिए इतना ही काफी था, मंत्री जी के आवास तक बिना रोकटोक आवाजाही। मेस में भरपेट खाकर उसने मंत्रीजी के दौलतखाने से विदाई ली।
कथानक को आगे बढ़ाने से पहले आवारा प्रसाद को थोड़ा और जान लेते हैं।
रूहेलखंड में रामगंगा किनारे बसे गांव गैनी में पचपन साल पहले पैदा हुए थे आवारा। पिता दुक्खन जन्म के कुछ समय बाद ही चल बसे। चाचा सुक्खन की देखरेख में बड़े हुए। आम फहम थी कि सुक्खन ही उनके जैविक पिता हैं।
चाचा सुक्खन का ब्याज पर रुपये उठाने का कारोबार था। सो उसका बचपन और लड़कपन मजे से कटा। ठीक वक्त पर आवारा का ब्याह कर दिया गया। एक के बाद एक पांच लड़कियां उनकी पत्नी ने जनीं। छठे गर्भ की पेट में ही हत्या कर दी गई, क्योंकि लड़की होने का पता चल गया था।
...और एक दिन चलते हाथ-पैर सुक्खन चल बसे। उनका जाना था कि आवारा के दुर्दि न शुरू हो गए।
जिन्होंने उधार लिया था, सूद देना तो दूर मूल को स्वीकार करने से ही इन्कार कर दिया। कुछ ही बरसों में घर में फांके की नौबत आ गई। गुरबत में मां के शरीर ने भी ज्यादा दिन साथ नहीं दिया। उनके भी प्राण पखेरू उड़ गए।
एक-एक करके लड़कियां जवान होने लगीं। अल्लाह का शुक्र था कि सभी बेपनाह खूबसूरत थीं। इसलिए उनके लिए शौहर मिलने में कोई खास दिक्कत नहीं आई।
लेकिन पल्ले में बिल्कुल भी रकम नहीं थी। इसका भी तोड़ आवारा ने निकाल लिया। पांचों लड़कियों की शादी के लिए लड़के सूबे के अलग-अलग कोनों में देखे। वह हर लड़की की शादी की तारीख से हफ्ते भर पहले घर से गायब हो जाते थे। बिना किसी को कुछ बताए। बीवी शादी कर पाने में असमर्थता जाहिर कर देती थीं। इज्जत की खातिर लड़के वाले दोनों तरफ का खुद ही खर्चा उठाते। इस तरह से सभी लड़कियां अच्छे घरों में पहुंच गईं।
पति-पत्नी ही घर में रह गए। अब घर का खर्चा चलाने के लिए आवारा ने गजब की तिकड़म भिड़ाई।
पड़ोसी खिल्लू का निधन हो गया। उनके एक मात्र संतान शोभा नाम की लड़की थी, जिसकी शादी हो चुकी थी। आवारा ने खिल्लू के भाई महावीर को समझाया कि खिल्लू को निसंतान साबित कर दो तो उसकी तीस बीघा जमीन तुम्हारी हो जाएगी।
शोभा ने जमीन पर दावा किया तो मामला अदालत में पहुंच गया।
शोभा का नाम न तो परिवार रजिस्टर में दर्ज था और न ही गांव की वोटर लिस्ट में। आवारा ने लेखपाल और पंचायत सेक्रेटरी को ऐसा सेट किया कि उन्होंने भी अदालत में शोभा के खिलाफ बयान दिया। ग्राम प्रधान ने जरूर शोभा के पक्ष में बयान दिए। लेकिन वकील को आवारा ने समझा दिया कि ग्राम प्रधान को वोट नहीं दिया था। इसलिए उल्टे सीधे बयान दे रहे हैं। वकील ने यही बात अदालत में कही। नतीजतन फैसला लालता के पक्ष में गया।
इस सारी तिकड़म का नतीजा यह रहा कि मुकदमे की कार्यवाही के दौरान आवारा और उसकी बीवी का खाना-खर्चा लालता के जिम्मे ही आ गया।
शोभा ने हाईकोर्ट, इलाहाबाद में अपील की तो आवारा के भी वहां आने-जाने का सिलसिला शुरू हो गया। रास्ता वाया लखनऊ था, सो आवारा का दिमाग उसे विधायक और मंत्री आवासों तक ले आया।
नेता नगरी में ठलुआ न समझा जाए, इसलिए खुद का भारी-भरकम तआर्रुफ देने के लिए उसने एक कंपनी-मेसर्स आवारा प्रसाद दुक्खन प्रसाद प्राइवेट लिमिटेड की ईजाद कर डाली।
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मैं आपको विषय से ज्यादा भटकाना नहीं चाहता। लेकिन कहानी के मुख्य पात्र के बारे में इतनी जानकारी देना भी बनता था। फिर लौट चलते हैं बहुखंडीय मंत्री आवास, जहां इन दिनों आवारा की आवाजाही काफी बढ़ चुकी है।
मंत्री आबिद रजा के दौलतखाने में बेरोकटोक आवाजाही से आवारा का कद काफी बढ़ गया। उनके घर में जाने का आवारा वह वक्त चुनता, जब मंत्रीजी कहीं बाहर हों। वजह, मंत्रीजी की नजर में ज्यादा चढ़ना उसकी रणनीति के खिलाफ था। आवास के बाहरी हिस्से में बने वॉशरूम में नहा-धोकर वहीं की मेस में रोटियां तोड़ता और फिर घंटे भर में आवास से बाहर।
यह सिलसिला चार-छह महीने जारी रहा। इस दौरान इसी परिसर में स्थित पीडब्ल्यूडी मंत्री रामनरेश यादव की कोठी की भी परिक्रमा उसने शुरू कर दी। संतरी से कई बार गुहार लगाई तो एक दिन ...
‘सा’ब गरीब आदमी है। कई दिन से आपका इंतजार कर रहा है।' संतरी ने अहाते में खड़े पीडब्ल्यू मंत्री से कहा।
‘क्यों?’
जवाब देने आवारा आगे बढ़ गया, ‘सा'ब बड़ा नाम सुना था आपका। हमारे क्षेत्र की सारी सड़कें ठीक हो गईं आपके राज में। पास पड़ोसियों ने कहा कि मंत्रीजी को धन्यवाद देना चाहिए। आबिद रजा साहब हमारे इलाके के ही हैं। अक्सर आना जाना होता है उनके यहां। इस बार आया तो प्रण करके कि आपका आभार प्रकट किए बिना नहीं जाऊंगा।’
नाम क्या है तेरा?
सा’ब आवारा प्रसाद
‘हूं’
कभी सा’ब हमारे क्षेत्र में जरूर दर्शन दीजिएगा।
‘ठीक है...ठीक है।’ कहते हुए मंत्री जी आगे बढ़ गए।
उसके बाद गाहे-बगाहे गेट पर ही मंत्रीजी को नमस्कार करने का मौका आवारा नहीं छोड़ता।
एक दिन मंत्रीजी लॉन में टहल रहे थे कि तड़ासन लगाए बैठा आवारा उनके पास जा पहुंचा।
‘सा’ब एक खबर देनी थी। डर लगता है कि कहीं आप बुरा न मान जाएं।’ आवारा ने कहा।
‘बोल..बोल’ मंत्री रामनरेश ने कहा।
‘सा’ब परसो आबिद रजा के घर पर 8-10 विधायक और सेहत महकमे के मंत्री राजेश जौहरी जुटे थे।’
‘तो!’ रामनरेश ने पूछा।
‘सा’ब सब सीएम के खिलाफ असंतोष जाहिर कर रहे थे। कह रहे थे कि इस सरकार में मंत्री और विधायक रहते हुए हमारा कोई काम नहीं बन रहा है। कुछ करो, वरना पांच साल बाद भी हम लोग तो ठन ठन गोपाल ही रहेंगे। वहां बगावत की ...’
‘सच कह रहा है।’मंत्री रामनरेश ने आंखें तरेरीं।
‘जांच करा लो हुजूर। सच न निकले तो उल्टा टांग देना।’ आवारा ने कहा।
‘इस बारे में किसी से कुछ जिक्र मत करना।’ मंत्री रामनरेश ने उसे हिदायत दी।
और तेजी से घर के अंदर चले गए।
अगले दिन टीवी चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज चल रही थी, ‘स्वास्थ्य मंत्री राजेश जौहरी और राज्य एकीकरण परिषद के उपाध्यक्ष आबिद रजा को मुख्यमंत्री दिनेश यादव ने बर्खास्त कर दिया है। पार्टी विरोधी गतिविधयों में लिप्त होने के कारण उनके खिलाफ यह कार्रवाई की गई है। इसके अलावा कई विधायक भी संदेह के दायरे में हैं। उनके खिलाफ भी जल्दी ही कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।’
राजनीतिक घटनाक्रम ने राजधानी में भूचाल ला दिया। पीछे की वजहों पर कई दिनों तक अखबारों के पन्ने रंगे रहे।
आवारा भी कई दिनों तक ज्यादा घूमा फिरा नहीं। कहीं पूरे खेल में उसका नाम सामने आ गया तो आबिद रजा छोड़ेगा नहीं। उसके घर के किसी सदस्य को अपने खेतों में हगने तक नहीं जाने देगा।
... लेकिन आवारा ने सोचा भी न था कि इतनी जल्दी उसके अच्छे दिन आने वाले हैं। अब वह पीडब्ल्यूडी मंत्री रामनरेश यादव का खास आदमी था। ओसीआर, दारुल शफा, रॉयल होटल, मीराबाई रोड ....हर जगह से खबरें लाकर वह रामनरेश को देने लगा। जल्दी ही मंत्रीजी के आवास पर आने वाले ठेकेदार भी उसका महत्व समझ गए। इस तरह से आवारा की आमदनी भी होने लगी।
जल्दी ही विधान परिषद चुनाव की अधिसूचना जारी हुई। रामनरेश यादव की कृपा से आवारा सत्ताधारी पार्टी के टिकट पर निर्विरोध विधान परिषद सदस्य चुन लिया गया।
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नामालूम विभाग मंत्री आबिद रजा पैदल हो चुके थे। महावीर हाईकोर्ट से जमीन का केस हार चुके थे। फैसला शोभा के पक्ष में आया।
और, इस वक्त आवारा प्रसाद बहुंखडीय मंत्री आवास के क्वार्टर नंबर 701 में आराम फरमा रहे हैं। बैठक में संतरी मुस्तैद हैं। मेन गेट के बाहर पड़ी बेंच पर फरियादी इंतजार कर रहे हैं...।
- अजीत बिसारिया
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