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माइक्रोफाइनेंसिंग

 

माइक्रोफाइनेंसिंग : आरबीआई के हाथ में सामाजिक न्याय का औजार

 

 

अजीत बिसारिया


एक काम की खबर चुनावी जुनून के नीचे दबकर रह गई। बिना साइड स्टोरी के अंदर के पन्नों में ही उसे जगह मिल सकी। यह अहम् खबर है-हिन्दुस्तान में पहली बार माइक्रोफाइनेंसिंग के क्षेत्र में काम कर रही एक कंपनी को बैंकिंग के लिए लाइसेंस दिया जाना। साल 2012-13 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इसके समेत दो ही नई बैंकों को लाइसेंस जारी किया। यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है गरीबी उन्मूलन। और, अब तक के अध्ययन बताते हैं कि विशाल जनसंख्या वाले देशों में माइक्रोफाइनेंस सेक्टर को बढ़ावा देकर ही गरीबी कम की जा सकती है।

 


यहां पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान का जिक्र करना भी मुनासिब रहेगा। ज्यादातर हिन्दुस्तानियों के दिमाग में पाकिस्तान की छवि है-आतंकी पैदा करने वाला मुल्क। हममें से ज्यादातर इस तथ्य से अन्जान हैं कि वहां माइक्रोफाइनेंसिंग का काम इतनी तेजी से फैल रहा है कि विश्व बैंक ने पाकिस्तान के माइक्रोफाइनेंस सेक्टर को नवाचार की प्रयोगशाला (laboratory of innovation)कहा है। पाकिस्तान में माइक्रोफाइनेंस बैंक खोले गए हैं, जो सिर्फ और सिर्फ गरीबों को स्वरोजगार के लिए छोटे लोन मुहैया कराते हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक ये बैंक लाखों लोगों की जिंदगी संवारने का जरिया बन रहे हैं। विश्व बैंक की ओर से साल 2013 में प्रकाशित महनाज और अबान हक की रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान के माइक्रोफाइनेंस सेक्टर ने महिलाओं की नवाचार (इनोवेशन) की क्षमता को विश्व पटल पर ला दिया है।

 


यूं तो हमारे मुल्क में भी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कुल लोन का 40 फीसदी हिस्सा प्राथमिकता क्षेत्र यानी किसानों,छोटे-मझोले उद्यमियों और गरीबों को देने का लक्ष्य सभी बैंकों को दिया है। लेकिन हम सभी जानते हैं कि दस हजार रुपये महीने तक आमदनी वालों को इसका फायदा बहुत ही कम मिल पाता है। और, यही लोग बहुतायत में हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तबके के लिए लक्ष्य काफी कम रखा जाता है। एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स) के डर से बैंक उसे भी पूरा करने में आनाकानी करते हैं। ऐसी स्थिति में जरूरी है कि गरीबों को लोन देने के लिए अलग बैंक स्थापित किए जाएं। जिनका काम सिर्फ छोटे लोन देना ही हो। पाकिस्तान की माइक्रोफाइनेंस बैंकें यही काम कर रही हैं। मुद्दे की बात यह है कि इन बैंकों का एनपीए न के बराबर हैं। लेकिन हम इस क्षेत्र में काफी पिछड़े हुए हैं। इसलिए केंद्रीय बैंक ने बेहद छोटे लोन देने वाली कोलकाता की 'बंधन फाइनेंसियल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड' को बैंक का लाइसेंस देकर ऐतिहासिक काम किया है। 'बंधन' की वेबसाइट पर उपलब्ध सूचना के मुताबिक, यह कंपनी आरबीआई में बतौर एनबीएफसी (नॉन बैंकिंग फाइनेंसियल कंपनी) दर्ज थी। यह संस्थान कई बरसों से गरीबों को स्वरोजगार के लिए कर्ज देने का काम कर रही है। यहां से एक हजार रुपये से लेकर पांच लाख रुपये तक का लोन लिया जा सकता है। हालांकि, अब तक इससे दस, बीस और पचास हजार रुपये की राशि बतौर कर्ज लेने वालों की तादाद ही ज्यादा है। इतना ही नहीं 'बंधन' पढ़ाई और इलाज के लिए भी एक हजार रुपये से लेकर दस हजार रुपये तक का लोन देती है। इसे 12 किस्तों में एक प्रतिशत मासिक ब्याज के साथ लौटाना होता है। अब तक करीब 55 लाख लोग 'बंधन' से कर्ज ले चुके हैं।

 


कुछ बरसों पहले तक यह कल्पना कर पाना मुश्किल था कि किसान सूदखोरों के चंगुल से मुक्त हो सकते हैं। लेकिन आज शायद ही किसी को शक हो कि किसान क्रेडिट कार्ड ने किसानों की जिंदगी में बड़ी तब्दीली ला दी है। किसानों को हर साल बहुत ही कम ब्याज दर पर फसल में खाद-पानी लगाने के लिए बैंकों से कर्ज मिल जाता है,जिसे चुकाकर वे अगले साल भी लोन पाने के हकदार रहते हैं। इस तरह से किसान क्रेडिट कार्ड उनके लिए वरदान से कम साबित नहीं हो रहे हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी महाजनों के चंगुल में किसानों के फंसे रहने के किस्से अब हकीकत में अममून नहीं मिलते। बाकी गरीबों की जिंदगी में भी ठीक इसी तरह से तब्दीली लाने का काम माइक्रोफाइनेंस बैंकों के माध्यम से किया जा सकता है। हमें अधिकाधिक ऐसे बैंक स्थापित करने होंगे, जहां से आसानी से दस हजार से लेकर एक लाख रुपये तक का कर्ज मिल जाए। हर सप्ताह, पखवाड़े या महावार (कर्जदार की सहूलियत के हिसाब से)किस्त में अदायगी की सुविधा भी हो।

 


छोटे कस्बों और गांवों में तमाम ऐसे धंधें हैं, जिन्हें इस छोटी रकम से शुरू किया जा सकता है। महिलाओं की भी इसमें अच्छी खासी भागीदारी हो सकती है। शादी या बीमारी में एकमुश्त इमदाद, साठ साला या विधवा पेंशन की मामूली मासिक रकम से गरीबों की तकदीर नहीं बदली जा सकती। तकदीर बदलने के लिए जरूरी है कि उन्हें स्वावलंबी बनाया जाए। उन्हें अपना रोजगार शुरू करने के लिए प्रारंभिक पूंजी मुहैया कराई जाए। सामाजिक न्याय का सिद्धांत भी गरीबों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने पर ही बल देता है। माइक्रोफाइनेंस बैंकों की स्थापना करके यह काम बखूबी किया जा सकता है। इसलिए आरबीआई द्वारा 'बंधन' को बैंकिंग का लाइसेंस दिया जाना एक अच्छा संकेत है। भविष्य में माइक्रोफाइनेंस बैंकिंग का दायरा हर गांव, कस्बे और शहर तक फैलाने की आवश्यकता है, ताकि सामाजिक न्याय, महिला सशक्तीकरण और खुशहाल भारत का सपना साकार हो सके।

 

 

 


(अजीत बिसारिया, लेखक अमर उजाला में मुख्य उप संपादक हैं।)

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