मेरा विश्वास काफी पुख्ता है
लेकिन न जाने क्यूं टूटता बिखरता रहता हैं
एक से विश्वास उठ जाए तो
दूसरे पर बैठने लगता है
विश्वास विश्वास ही रहता है
किरदार बदलते चले जाता हैं
मेरा अंधविश्वास कितना पुख्ता है
इस बारे में बहुत कम सोच पाया हूँ
शायद इसलिए कि
ये जहाँ जिस पर था, जब जब था
आज भी वहाँ उस पर जस का तस है
मेरा अंधविश्वास
अज़र अमर है शायद.....
Akash Sharma Prince
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