Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जब तक न डर था तेरा, तब तक डरा हुआ था,
डरने लगा जो तुमसे, डर से अलग हुआ हूँ |
गम में घिरा हुआ था, गमगीन हो रहा था,
गम मे तेरे जो डूबा, गम से उबर गया हूँ |
खुशियों के बीच रहकर, दु:ख मे डूबा हुआ था,
चिन्ता मे तेरे डूबा, खुशियाँ हीं खुशियाँ पाई |
जब फ़िक्र नहीं था तेरा, फिक्रोaa से घिरा हुआ था,
अब आई फिक्र तेरी, बेफ़िक्र हो गया हूँ |
धन पास जब मेरे था, धनहीन था मैं तब तक,
धन तेरा तुझको देकर, धनवान हो गया हूँ |
हंसता था पहले जब भी, खुशियाँ नहीं थी दिल मे,
तेरे लिए जो रोया, दिल मे खुशी भरी है |
दिल भरा भरा था, पर प्यार न था मुझमें,
जब से हुआ मैं खाली, तेरा प्यार पा गया हूँ |
रौशनी हो रही थी, कुछ दिख नही रहा था,
आँखें जो बंद कर ली, दीदार तेरा हुआ है |
डिग्री बहुत थी पाई, पर फिर भी अज्ञानी था,
दीप ज्ञान का हीं पाकर , ज्ञानी अलख हुआ है |

 




- Alakh Sinha

 

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