सुना सृष्टि के आदि में
हुआ मंथन क्षीर सागर का,
निकली उससे कई रत्नमाला
और साथ में बिषधारा |
कामधेनु, लक्ष्मी भी निकली
बनी श्रृंगार विधाता की,
निकला कलश अमृत का उससे
अमर हुए सुर वीर सभी |
अमरत्व का प्रतीक है अमृत
चाहत की बेली है अमृत,
सुर नर मुनि गण चाहें अमृत,
प्यार व सुख की ख़ान है अमृत |
घट के भीतर है एक सागर
कहते जिसको हम भवसागर,
हिचकोला ले उफन रहा है,
मंथन के लिए मचल रहा है |
उस भवसागर में एक अमृत
कलश भरा लटका है अमृत,
सबके पास है अपना अमृत
मानव सृष्टि का आधार है अमृत|
पंगु चड़कर बिन पावों के
पहुँचे वहाँ जहाँ है अमृत,
भर भर उदार निहाल हुआ वह,
जिसने लेकर पिया अमृत |
Alakh Sinha
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