मय पीने वाले, हर रोज मयखाने जाते हैं,
मिलता न जब मयखाने में, जन्नत से मंगा कर पीते हैं |
बुज़दिल है वो पीने वाले, जो घर में छुप कर पीते हैं,
जिन्दा दिल होते वो है, जो सब को पिलाकर पीते हैं |
उस मय की में क्या कहूँ, जो दुनिया वाले पीते हैं,
सच्चे पीने वाले तो, साकी का दिया हीं पीते हैं |
शंका कि गुंजाईश नहीं, जब पीने वाले पीते हैं,
नींव उनका मोहब्बत है, साकी को वहीं बुलाते हैं |
अंतर्मुखी दुनिया में साथ साथ सब पीते हैं,
दो घूँट मय का लेकर के, सुख-शांति से जीते हैं |
दर्द का नामोनिशान नहीं, उनके खुशी की दुनिया में,
पीते पीते उठते हैं, हर समय वो ताज़ा रहते हैं |
पीने की क्या बात करें, कहाँ कहाँ हम पीते है,
दर पे उनके जीते हैं, दर पे उनके पीते हैं |
पीने की सीमा नहीं कोई, मय पीने वाले कहते हैं,
उनके चौखट पर आते हैं, उनका हीं दिया हम पीते हैं |
भिक्षुक हैं, तेरे घर के, और कहीं नहीं जाते हैं,
मिल जाए तो पीते हैं, न मिले तो फांका करते हैं |
- Alakh Sinha
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY