Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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माँग का सिंदूर

 

तू कहती मैं तेरा हूँ
तू मेरे बिन अधूरी है
मैं कहता तू पूरी है
जो मेरी है वो तेरी है |

 

जन्म दिन मेरा है
पर खुशी तुझे है
इसे कहते हैं प्यार
जो तेरी है और मेरी है |

 

तू आती है अक्सर
और बेहोश कर जाती है
मैं नींद मे रहता हूँ
तू उड़ जाती है |

सपनों की दुनिया में भी
अब तू हीं तू है
मै जाऊं तो कहाँ जाऊं
हर जगह तेरी जगह बन गयी है |

 

तू बाएँ है, तू दाएँ है
मेरे हर करबट के साथ है
तेरी याद की परछाई
चादर के सिलवट के साथ है |

 

दिल के गहराई मे
स्थान जो दिया तूने
पाकर प्यार तेरा
जीवन संवार लिया मैने |

 

माँग का सिंदूर बनाकर
तूने अपनाया मुझे
बाहों का हार देकर
मैने सजाया तुझे |

 

Alakh Sinha

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