Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पात्र

 

 

जब जीवन मे अमृत भी है,
क्यूँ पीय­ हम विष ही विष?
जो जागत है, जो जानत है,
पावत है उनका आशीष |
जब जीवन मे अमृत भी है,
क्यूँ पीय­ हम विष ही विष ?

 

 

प्याला तो प्याला है,
रख लें जो भी चाहें हम,
एक है माया, दूजे ब्रह्म ,
जो चुनना चाहें, चुन लें हम |
जब जीवन मे अमृत भी है,
क्यूँ पीय­ हम विष ही विष?

 

 

भव के सागर मे उठता जब,
उनके प्रेम की एक लहर
पात्र हृदय का खाली लेकर,
चाहें पूरा भर लें हम |
जब जीवन मे अमृत भी है,
क्यूँ पीय­ हम विष ही विष ?

 

 

मानुष जीवन पाकर सोएँ,
नादां ऐसे बनें नहीं हम
मेरे जीवन को पार लगाएं,
चरणों में बीनती करें हम |
जब जीवन मे अमृत भी है,
क्यूँ पीय­ हम विष ही विष?

 

Alakh Sinha

 

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