जब जीवन मे अमृत भी है,
क्यूँ पीय हम विष ही विष?
जो जागत है, जो जानत है,
पावत है उनका आशीष |
जब जीवन मे अमृत भी है,
क्यूँ पीय हम विष ही विष ?
प्याला तो प्याला है,
रख लें जो भी चाहें हम,
एक है माया, दूजे ब्रह्म ,
जो चुनना चाहें, चुन लें हम |
जब जीवन मे अमृत भी है,
क्यूँ पीय हम विष ही विष?
भव के सागर मे उठता जब,
उनके प्रेम की एक लहर
पात्र हृदय का खाली लेकर,
चाहें पूरा भर लें हम |
जब जीवन मे अमृत भी है,
क्यूँ पीय हम विष ही विष ?
मानुष जीवन पाकर सोएँ,
नादां ऐसे बनें नहीं हम
मेरे जीवन को पार लगाएं,
चरणों में बीनती करें हम |
जब जीवन मे अमृत भी है,
क्यूँ पीय हम विष ही विष?
Alakh Sinha
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY