Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हम देखते रहे !

 

कारवाँ गुजर गया, हम खड़े देखते रहे।
दुनिया लुट गई हमारे सामने, हम देखते रहे।।
टूट गया दिल, हम चुपचाप रोते रहे।
आँसू बहते रहे आँख से, हम पोंछते रहे।।
आईना दगा दे गया, हम अक्स पहचानते रहे।
बिखरे काँच की किरचें किरचें, हम बटोरते रहे।।
कदमों के बाकी रहे निशां हम खेाजते रहे।
सूने घर के सन्नाटे हमें तोड़ते रहे।।
यादें भूले वादों की, हम सहेजते रहे।
उम्मीद आखिरी ढह गई, हम सोचते रहे।।
नफरतों के सैलाब में हम देर तक डूबते रहे।
प्यार को सिरोन की हरचंद कोशिश करते रहे।।
कशमकश की आँधियों से दो-चार हम होते रहे।
भूलना चाह कर भी उनको याद हम करते रहे।।
ज़मीर बेचना नाम नहीं प्यार का, हम खुद को समझाते रहे।

 

अपने अकलेपन से लड़ने को खुद को, तैयार हम करते रहे।।
अब तक शिकायतें जिदंगी से, हम करते रहे।
मौत की आगोश में छुपने का स्वप्न हम देखते रहे।।
कारवाँ गुजर गया, हम खड़े देखते रहे।
दुनिया लुट गई हमारे सामने, हम देखते रहे।।

 

अलका ‘अलमिका‘

 

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