Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

मन मेरे

 

 

मन मेरे, बनकर कस्तूरी महका दे मुझ को,
हिरनी बनूं, कुँलाचे भरूँ पर डरूँ न किसी आहट से।
मन मेरे, सहेज कर, पराग खिला दे मुझ को,
फूल बनूँ, महकती रहूँ, पर डरूँ न मुरझाने से।।
मन मेरे, रंग-बिरंगे पंख दे इन्द्र धनुष बना दे मुझ को,
तितली बनूँ, इठलाती फिरूँ, पर न डरूँ बादलों से।
मन मेरे, पंख दे कर गगन की पखाज करा दे मुझ को,
पंछी बनूँ, उड़ती फिरूँ, पर न डरूँ किसी जाल से।।
मन मेरे, जीवन अमृत का पान करा दे मुझ को,
इंसां बनूँ, कार्य करूँ, पर न डरूँ मृत्यु शैया से।

 

 

 

अलका ‘अलमिका‘

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ