Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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भारत माँ की व्यथा

 

भारत माँ कर रही पुकार,
अब करो न, मुझ पर अत्याचार l

 

हिन्द-पाक बटवारे का,
पहले ही सह चुकी मैं गम ,
ख़ुशी मिली थी आज़ादी की,
पर न रह पायी कायम l
नेताओं ने स्वार्थ की खातिर,
मेरी काया की दो-तार,
भारत माँ कर रही पुकार,
अब करो न, मुझ पर अत्याचार l

 

समुचित विकास सुनिश्चित करने,
राज्यों को दिया आकार,
यात्रा शुरू हुई प्रगति की,
कदम बढ़ाये आगे चार l
किन्तु स्वार्थ फिर आड़े आये,
तन पर मेरे चली तलवार,
भारत माँ कर रही पुकार,
अब करो न, मुझ पर अत्याचार l

 

देश के सारे नेता मिलकर,
मुझको कर रहे खंड-खंड,
उत्तरा, छत्तीसगढ़, झारखंड,
अब तेलंगाना, बुंदेलखंड l
राजनीति-हित इनका मकसद,
नहीं देश से इनको प्यार,
भारत माँ कर रही पुकार,
अब करो न, मुझ पर अत्याचार l

 

हिन्द-पाक बटवारे के,
दुष्परिणाम सभी ने देखे,
यही हाल अब राज्यों का,
हर नेता अपनी रोटी सेंके l
सरहद के अन्दर सरहदों की,
खड़ी कर रहे ये दीवार,
भारत माँ कर रही पुकार,
अब करो न, मुझ पर अत्याचार l

 

बहुत थक गयी हूँ इस सबसे,
सुनो देश के कर्णधार ,
ऊपर उठो स्वार्थ से अपने,
माँ को मत समझो व्यापार l
उन्नति के सोपान बनो अब,
जिससे हो सबका उद्धार,
भारत माँ कर रही पुकार,
अब करो न, मुझ पर अत्याचार l

 

 


........ "अल्पना मिश्रा"

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