ऐ जिन्दगी, तू अपने राज,
यूँ बयाँ न होने दे,
कहीं मैं, तुझसे ही,
नज़र चुराने न लगूं ।
मुझे तेरी बगिया के,
फूलों से है, बहुत प्यार,
कहीं उनके कांटों से,
मैं घबराने न लगूं ।
तेरा साथ रहे अरसे तक,
तमन्ना तो है बहुत,
कहीं मौत आने पर,
उससे कतराने न लगूं ।
मैने बहुत सलीके से,
संजोया है तेरा घर,
कहीं बिन बताये उससे,
रुख़सत होने न लगूं ।
खुशकिस्मत हूं, इस जहाँ से
मिले हैं अज़ीज़ दोस्त,
आशंकित है “अल्पी”,
कहीं अपनों से, बिछुड़ने न लगूं ।
. “अल्पना मिश्रा”
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