केदारनाथ धाम की त्रासदी के समय मैने यह कविता लिखी थी...
*** ह्रदयविदारक घटना ***
उत्तराखंड का मंजर देखा,
केदारनाथ का वह कहर देखा l
श्रद्धालुओं को जाते देखा ,
पर, लौटकर न आते देखा,
कल तक सुंदर तीर्थ था जहाँ,
श्मशान में बदलते देखा l
एक ऐसा सैलाब था आया,
मानो डायनासौर है आया,
जिसको उसने सामने पाया,
सबको अपना ग्रास बनाया l
अकल्पनीय हादसा था यह,
किंकर्तव्य विमूढ़ कर गया !
कुछ ने तो अपनों को बचाया,
कितनों ने सर्वस्व गँवाया l
लगता है, अब इस धरती पर,
कलंक का इतना बढ़ गया भार,
मानो जैसे पाप के आगे,
पुण्य की, हो रही है हार l
वृद्धों को यदि मोक्ष दिलाया,
पर बच्चों ने क्या था बिगाड़ा ?
बगिया के थे फूल हमारे,
उनको तुमने क्यों है उजाड़ा ?
भगवन अब विनती ये हमारी
ऐसा अनर्थ, कभी न करना,
गोद भरी यदि माँ की तुमने,
उसे कभी सूनी न करना l
........... "अल्पना मिश्रा"
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY