Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बदलता वक्त

 

 

परिवर्तित होता जा रहा आज मौसम!
जाड़ा, गर्मी और बरसात!
हाय रे ! तीनों भयानक, तीनों निर्मम!
सह नहीं पाता मेरा बदन!
एक के गुजरने पर दूसरा बिन बताये!
शुरू कर देता अपनी चुभन!
कैसा हैं ये परिवर्तन!
क्यों होता है ये परिवर्तन!
समय बदलता रहता है!
काल का पहिया चलता रहता है!

 

 

जमाने पर भी इसका असर है!
बदला-बदला सा हर मंजर है!
यहाँ नये रंग-रूप नित्य खिलते हैं!
आजीबो-गरीब मुशाफिर जीवन सफर में मिलते है!

 

 

पहले छोटे बच्चे सा मैं दिखता था!
हरेक को बहुत अच्छा लगता था!
वही कवि कहकर मुझे आज चिढा रहे हैं!
अपने छोटे से उस मासूम बच्चे को भूलते जा रहे हैं!

 

 

सच --
कितना असहाय हो गया मैं!
कितना बूढा हो गया तुम्हारा अमन!
जमाने से कितना पिछड गया हूँ!
अकेलेपन के सपने से मैं डर गया हूँ!
बदलते वक्त के अनुरूप मैं भी ढल जाऊगाँ!
पुराने खोटे सिक्के की तरह एक बार फिर चल जाऊगाँ।

 

 

रचनाकाल- 25 जनवरी 2015, सूरतगढ़ (राजस्थान)

©अमन चाँदपुरी

वास्तविक नाम- अमन सिंह

 

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