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Dr. Srimati Tara Singh
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हे! पंक्षी

 

 

हे! पंक्षी
मैनें कब चाहा
कि बँध जाओ तुम
एक परिधि में
सिकुड़ जाए तुम्हारे पंख
पस्त पड़ जाए
ये हौसला
थकान से चूर हो जाओ

 

 

हे! पंक्षी
मैनें तो सिर्फ इतना चाहा
कि तुम मुझसे
कभी-भी दूर न जाओ
मेरा जी नहीं लगता
इस निरस और
मतलबी संसार में
तुम मेरे साथ रहना
हम दोनों उड़ेगे
इस खुले गगन में
साथ- साथ
तुम और मेरा मन।

 

 

- अमन चाँदपुरी

 

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