गूँजी हैं चीखें
शब्द-शब्द हैं मौन
रोता हैं कौन।
खेत पूछते
क्यों डुबोया तुमने
बोलो न पानी।
न तुम, न मैं
कौन भूल पाया है
बीता समय।
चोरों का राज
बिना रूपये दिये
बने न काज।
बरसे नैन
तुम्हारे बिन चैन
अब न आये।
बड़ी कठिन
जीवन डगरियाँ
मान न मान।
मन हैं पंछी
हर क्षण उड़ता
कतरों पर।
वर्षा की बूँदें
शांत वातावरण
पत्तों पे ठहरी।
बादल चोर
शीत में रोज-रोज
धूप चुराता।
नाजुक पाँव
पड़े कंकड़ पर
हुई चुभन।
हार पे हार
बहुत निर्लज्ज है
फिर तैयार।
गाँव का कुआँ
पैसे बदले पानी
ठाकुर राज।
धान लगाती
ढेर सारी गोपियाँ
कजरी गाती।
नभ में छाये
इन्द्रधनुषी रंग
बच्चे हैं दंग।
पर्वत स्थिर
बह चली नदियाँ
सागर ओर।
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