Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नन्हीं गौरैया

 

 

नन्हीं गौरैया
उड़ते-उड़ते चली आयी
मेरे कमरे में
मैनें तुरन्त लपककर
बन्द कर दिया
खिड़की और दरवाजा
और पकड़ने लगा उसे

 

 

नन्हीं गौरैया
अपने बचाव के लिए
फुदुककर पहुच गई
पुरानी टँगी हुई तस्वीर पर
फिर मुर्चे से लदी कील पर
फिर जंगले पर
फिर मेज पर

 

 

उसे लगा
अब वो कैद हो चुकी है
किसी गलत और अंजान से पिंजरे में
यहाँ तो
पहले से मौजूद है
एक पंक्षी
जो चील की भाँति
उसे झपटने चाहता है

 

 

बेचारी
बाहर निकलने की कोशिश में
कमरे भर में दौड़ती रही
और झूम-झूम कर चल रहे
तेज पंखे की
नुकीली पत्तियों से जा भिड़ी
उसकी गर्दन टूट गई
और शरीर लहुलुहान हो गया
वो फर्श पर धड़ाम से चित्त गिर पड़ी

 

 

बेचारी
दर्द से कराहते हुए
तड़प-तड़प कर मर गई
और मैं पास खड़े होकर
सिर्फ देखता ही रह गया।

 

 

 

अमन चाँदपुरी

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