सूरज है उगता।
शामं को छिपता।
रहता है वो आकाश मेँ।
दिन भर बुलायेँ।
हम आजा यहीँ पे।
आता नहीँ है वो पास मेँ।
किरणेँ जो पड़ती है।
घर मेँ हमारे।
पकड़े तो न आये हाथ मेँ।
दिन भर खिलाये।
पर पास न आये।
रहता है वो आकाश मेँ।
हमनेँ ये सोचा।
कि चले वहीँ पे।
खेले वहीँ पे साथ मेँ।
उड़ न सकेँ हम।
रह गये यहीँ पे।
आया न वो मेरे पास मेँ।
शामं जब होती।
तो छुपता वहीँ पे।
सोता हमारे साथ में।
दिन भर बुलायेँ।
पर पास न आये।
रहता है वो आकाश मेँ।
- अमन चांदपुरी
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