ये कैसा डरावना मंजर है
ये कैसी भयानक तबाही है
नेपाल हो गया है बेहाल
सब ओर मची त्राहि त्राहि है
मैखाने तो सभी हैं लुट चुके
खाली जाम ले हाथ मे साकी है
कुदरत के इस कहर के बाद
अब और क्या होना बाकी है
कभी बाढ़ कभी तूफानो से
सूखे महामारी के बहानो से
कुदरत ने कितना आगाह किया
फिर भी हमने तिरस्कार किया
आगे क्या होगा क्या मालूम
ये तो छोटी सी झांकी है
थोड़ी सी बुद्धि क्या पा ली
मानव अंहकार मे डूब किया
अपनी ही कब्र को खोदने का
क्या काम बहुत ही खूब किया
लो भुगतो अब परिणाम सभी
जन जन के हाथ बैसाखी है
70 साल पहले का याद करो
जैसे हिरोशिमा नागासाकी है
माना हमने विकास किया
तो हमने क्या खाक किया
एय्याशी के साधन यूं जुटा
जिस डाल पे बैठे सदियों से
मूर्खता मे उसी को काट दिया
कुदरत ने आपे से होकरबाहर
मासूमो का सर्वनाश किया
ये न्याय नहीं चालाकी है
कुदरत से ये इल्तजा है मेरी
छीन ले जो भी अतिरिक्त दिया
एक बार फिर प्रारम्भ होने दो
पाषाण युग से आगाज नया
कन्दराओं मे फिर निवास करें
एक नए सिरे से फिर अपना
प्रकृति के अनुरूप विकास करें
कुदरत के इस कहर के बाद
अब यही तो होना बाकी है
बस यही तो होना बाकी है
अमरनाथ मूर्ती
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